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8 May 2024 · 1 min read

हे जीवन पथ के पंथी

हे जीवन पथ के पंथी तू जा कहाँ रहा है
यह पथ जरा कठिन है चलना जरा संभल के
इस मार्ग में है रोड़े ,कांटों की चुभन है
क्या सहन कर सकेगा तू अपने कोमल तन में
मन तेरा नासमझ है क्या इसको समझा लेगा
भटके ना यह डगर से चलना जरा संभल के।

छोड़ी जो तूने राहे डगमगा गया कदम जो
मुश्किल है फिर तो चलना पथ पर जो आगे बढ़ना
तू है बड़ा बहादुर पथ को जो तू समझ ले
चलते ही जाना तुझको जीवन का ध्येय यही है।
क्या लड़ सकेगा तू शत्रु से मन के बल से
ढलानों की है राहे, चलना जरा संभल के।।

-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’

Language: Hindi
78 Views

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