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7 Mar 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

करो तारीफ़ खुलकर तुम लगे दम बात में जिसकी
बुरा कहदो उसे भी तुम मिले ग़म बात में जिसकी/1

नहीं इंसान के क़ाबिल मिलन बेकार है करना
रखो दूरी नयन होते अगर नम बात में जिसकी/2

वही अपना वही प्यारा वही है दोस्त भी सच्चा
छिपा हो प्यार का अहसास अनुपम बात में जिसकी/3

सुनोगे तो बताऊँगा सुनो अब मैं बता ही दूँ
करो सदक़ा सदा उसका हो आलम बात में जिसकी/4

करो इज़्ज़त मुहब्बत कर ज़माने में उसी की तुम
कभी भी मैं नहीं हरपल हो बस हम बात में जिसकी/5

मुनासिब दूरियाँ करना नहीं भाए मुझे उससे
हुनर बसता कराने का ही संगम बात में जिसकी/6

ग़ज़ल ‘प्रीतम’ सुनाए तो सुनूँगा नींद से जगकर
बना पाया हमेशा मन है रुस्तम बात में जिसकी/7

#आर. एस. ‘प्रीतम’

Language: Hindi
1 Like · 132 Views
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