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29 Jan 2025 · 1 min read

दोहा मुक्तक

महाकुंभ में भीड़ का, अद्भुत पावन रंग।
देख देख सब हो रहे, और हो रहे दंग।।
सत्य सनातन धर्म का, दिखता रूप अनूप।
धर्म विरोधी काँपते, सब ख्वाहिश बदरंग।।

नियम धर्म को छोड़ कर, करते नित वे रार।
राष्ट्र विरोधी तत्व सब, हैं जितने बदकार।।
दाल नहीं है गल रही, मुश्किल में हैं प्राण।
खिसियानी बिल्ली बने, करते व्यर्थ पुकार।।

चालें जितनी चल रहे, सब होती बेकार।
नित्य नई वे ठानते, सुबह-शाम ही रार।।
हो जाते हैं फुस्स सब, एक -एक आरोप।
जैसे रोते झुंड में, रोते सभी सियार।।

सुधीर श्रीवास्तव

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