एक था नंगा फ़कीर

एक था नंगा फ़कीर
एक था नंगा फ़कीर
अपने दौर का ईसा
अपने वक्त का कबीर…
(१)
रात-दिन डोलते थे
जिसके आगे-पीछे
पुरोहित, पूंजीपति
सिपाही और वज़ीर…
(२)
देश और समाज की
उसने जो सेवा की थी
अगली पीढ़ियों के लिए
रहेगी वह बनके नज़ीर…
(३)
अहमियत दिलेर की
लोग समझेंगे वही
मूर्दों के इस दौर में
ज़िंदा है जिनका ज़मीर…
(४)
अपने दिल के ख़ून से
उसने खींची थी कभी
छाती पर इतिहास की
एक लंबी-सी लकीर…
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Shekhar Chandra Mitra
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