* बस एक तेरी ही कमी है *
अब मैं अपनी
बर्बादियों से
क्या कहूं
वो आबाद रही
जीवनभर
मैं भागता रहा
जीवनभर
और सलीका
मुझे
जीने का कब था
मैं यूंही
राहे-जिंदगी
में आ गया
वो मुझको भा गया
और
मैं उसको भा गया
ना जाने अब
वो प्यार कहां गया
गया गया गया
अब
हाथ से आसमां
निकल गया
न जाने
मेरे पैरों तले की
धरती को
अब कौन ?
निगल गया
रूखा
रेगिस्तान था
वो दरिया बन
आंखों से निकल गया
नमी आज भी
आंखों की जमीं है
अब एक
उसकी ही कमी है
बस एक
उसकी ही कमी है
वरना आंखों में अब
बर्फ़ फिर से जमी है
अब आके
सुलगा दे
आग दिल की फिर
ये दिल की लगी
दिल्लगी तो नही है
आ अब
हाथ अपने सेंक
इस आग पर
बस तेरी ही कमी है
सोंखली तेरे ग़म ने
आंखों की नमी है
ये बर्फ़
यूं ही नहीं जमी है
आ आसमां बन
दिल की जमीं पर
ये धरती तो
फिर भी यहीं जमीं है
वो शातिर था
फिर भी मेरे दर्द से
वो पिघल गया
बड़ा पत्थर दिल था
वो ना जाने मोम बन
कब पिघल गया
आजा आजा ये धरती
आज भी
उसी जगह खड़ी है
जहाँ छोड़ा था तुमने
बस एक तेरी ही कमी है
बस एक तेरी ही कमी है ।।
💐मधुप “बैरागी”