अपनापन तुमसे पाया है (गीत)
अपनापन तुमसे पाया है (गीत)
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अनगिन मधुर समर्पण अपनापन तुमसे पाया है
(1)
अनजाने हम मिले नहीं थे बचपन सारा बीता
लिखी भाग्य में थीं तुम ,जैसे लिखीं राम के सीता
प्रेम हमारा घर-आँगन कोने-कोने छाया है
अनगिन मधुर समर्पण अपनापन तुमसे पाया है
(2)
मिली हमें वह छाँव गृहस्थी अनुपम जन ने पाई
छोटी सुगढ़ सलोनी दुनिया हमने एक बनाई
काया के उस पार प्रफुल्लित मन को पहुँचाया है
अनगिन मधुर समर्पण अपनापन तुमसे पाया है
(3)
करवा चौथ न जाने कितनी आई और गई हैं
परिभाषाएँ रिश्तों की दिखती हर बार नई हैं
धवल चाँदनी चाँद सितारों ने हमको गाया है
अनगिन मधुर समर्पण अपनापन तुमसे पाया है
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रचयिता:रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र..)
9997615451