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26 Apr 2020 · 1 min read

मनुष्य भीतर से खोखला है

ज़िंदगी में नवाजे गए लोग आज भी शोहोरत के पीछे भाग रहे हैं,
फासला है सिर्फ एक दूरी का जहा अपनी ताज गवा रहे हैं।

मुनासिब हैं नामक मगर अपने घमंड को नया आकर दे रहे हैं,
ज़िंदगी की बाज़ार में अपने एक एक कर्मो का मटका सज़ा रहे हैं।

किसी ओर के खाने में पानी डालकर अपनी मकान को सवर्ने में तुले हुए हैं,
फरिश्तों जैसा दिल दिखाकर अपने पैर में खुद खिलाड़ी मर रहे हैं।

अनेक रंगो को मिलकर अपनी अस्तित्व को एक आकर दे रहे हैं,
गिरगिट से भी जायदा रंग बदलकर अपनी आप को खुदा केह रहे हैं।

शिकायते हर कोई करता है सिर्फ कुछ ही अपने ज़िंदगी को खुले में जिया करते हैं,
दुख और गम को पिरोकर एक खुशियों का मोहोला बनाया करते हैं।

फरमाइश में जीने की हर एक नाकाम कोशिश करने जुठ जाता है,
जिसको एक वक़्त की रोटी मिलती हैं वह उसी में खुश हो जाता हैं।

– Basanta Bhowmick

Language: Hindi
2 Likes · 270 Views

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