घायल
घायल
लेखक – डॉ अरूण कुमार शास्त्री
शीर्षक – तन्त्र
विधा – पद्य काव्य
घायल तन्त्र का अवसाद समझना प्रेम निःशुल्क को बकवास समझना।
ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
चलते – चलते बिना पिए बहक जाना, डगमग डगमग डगमगा जाना ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
घायल होना प्रेम में किसी के पीड़ा छलकाते जाना।
आंखों से रह – रह अश्रु बहाना ये तो मन का प्रलाप है।
इंसानों की रीत समझना,
दुःख सुख में सहयोगी बनना।
कोई फंसा हो गर दलदल में, उसको उस दलदल से बाहर निकालना।
लेकिन होता उलटा पुलटा,
कौन समझता दर्द किसी का।
यहां सब के सब अन्यायी है ,
घायल मन को देख – देख कर, मन ही मन आनंदित होना।
इसी बहाने सुख पाते हैं,
कोई यदि कुछ माँग ले उनसे , चुप रह जाते हैं।
घायल तन्त्र का अवसाद समझना प्रेम निःशुल्क को बकवास समझना।
ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
चलते – चलते बिना पिए बहक जाना, डगमग डगमग डगमगा जाना ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
मेरी दुआओं में बसते हो , मेरी सदाओं में बसते हो।
मुझको तो प्यारे लगते हो।
समीकरण सहानुभूति का इंसानी रिश्ते नाते हैं।
जो मैं तुमको मना करूंगा, अपने साथ ही दगा करूंगा।
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