ग़ज़ल
नज़र तो अब हमारी ढबढाबाने लगी है।
मग़र तस्वीर उसकी साफ़ नज़र आने लगी है।।
हया से यह रूख़्सार सूर्ख होने लगे हैं।
धड़कन मिलन के गीत गाने लगी है।।
कलियाँ फूल बन कर इठलाने लगी है।
बुझती हुई शमा मदहोश बनाने लगी है।।
चमक रही है चांदनी ज़मीं पे अपने गुरूर में।
चाँद को पाने की ख़्वाहिश उसकी बड़ने लगी है।।
हवाओं ने बिख़राई है सोंधी सी ख़ुशबू
फिज़ाओं में रंगत दिल-कशी की पनपने लगी है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
20/2/2025✍️✍️