नारी
नारी तू सृजनहारी है
तेरे दम पे ही तो दुनिया है सारी
क्यों नहीं समझ पाया आदमी
उसकी भी तो है तू पालनहारी।
तू है तो जीवन, जीवन है लगता
जीवन के हर पल में है तू नारी
कभी माॅं, बहन, बेटी बन रहती
प्रेम की बहती धारा है तू नारी।
हर आगे बढ़ते कदमों के
हौंसलों की जान है तू नारी
दर्द सहकर भी जो मुस्कुराए
उस जज्बे की पहचान है तू नारी।
आवाज उठे जब अपने हक की
सबके लिए मिसाल है तु नारी
लड़ना हो जब अंग्रेजों से
लक्ष्मीबाई सी मर्दानी है तू नारी।
कलम उठाए तो इन्कलाब लिखे
अरूंधति राय सी रचनाकार है तू नारी
हथियार उठे जब हाथ में तेरे
दुर्गा सा करती संहार है तू नारी।
महक उठे घर होने से तेरे
त्याग, प्रेम, ममता की मूरत है तू नारी
हर सुख दुःख में साथ निभाती
आदमी की हर सफलता में तू है नारी।
@ विक्रम सिंह