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29 Oct 2018 · 1 min read

मजदूर

फांके की रोटी
फटी लंगोटी
सूखे निबाले
दिल पे छाले
स्वप्न खुरदुरे
आस अधूरे
तन स्वेदसिक्त
मन भावरिक्त
समिधा-संघर्ष
किए लुप्त हर्ष
निष्ठुर ठेकेदार
विशेषणों का बौछार
फिर भी कार्यरत, मजबूर
मैं,मेहनतकश मज़दूर।

-©नवल किशोर सिंह

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 352 Views
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