पूरे सपने न हुए दिल भी गया हाथों से

पूरे सपने न हुए दिल भी गया हाथों से
आंसू-रुकते- ही नही नीर बहे आंखों से
तड़पके रोज मरू फिर जान जाती नही
जख्म सीने चुभे दिल भी गया हाथों से
ढूढता दिल है जिसे वो नजर नहीं आता
सांझ होती है मगर वो इधर नही आता
दर्द-ए- दिल की चुभन,जख्म लिए सीने
याद आती है मगर वो नजर नहीं आता
✍️ कृष्णकांत गुर्जर