अभिज्ञान की अभिव्यक्ति

लेन ड्राइविंग भारत में व दुनियां के अधिकांश देशों में अभी उस बच्चे से जिसको जन्म लिए मात्र तीन महीने ही हुऐ।
ये घुटनों पर भी नहीं पहुंच सकी अभी व्यवस्था अनुसार अभिव्यक्ति अनुसार और व्यक्ति अनुसार।
हम रोज़ ही चलते हैं सड़क पर आना ही पड़ता है सड़क पर, काम कहां चलता है इसके बिन, किसी का जीवन।
कभी भोजन के लिए कभी भोजन व्यवस्था के लिए कभी कभी भोजन को पचाने के लिए ।
और तो और भाई जी कभी स्वयं की मर्जी से कभी कभी चिकित्सक की बजह से, कभी ईर्ष्या से कभी खुशी से कभी खिन्न मन से ।
और तो और कभी कभी सुंदर पड़ोसी के कारण कभी प्रकृति के नियम मजबूर करेंगे।
होते हैं बहुत से कारण कभी प्रत्यक्ष और कभी कभी अप्रत्यक्ष अप्रत्याशित।
यूँ तो सबको सड़क सुरक्षा के नियमों का करना चाहिए पालन लेकिन मानवीय मानसिकता कहां होती है नियमों के मुताबिक।
बहुत ही गूढ़ विषय है, गहरा अहसास है क्योंकि सुरक्षित रहना पहला परिहास है।
हाहाहाहाहा परिहास लिखा मैंने गलती से नहीं जान बूझ कर लिखा , परिहास ही तो है दूसरे का जीवन ।
स्वार्थ ने छुपा रखें हैं सारे के सारे मानवीय संस्करण ।हम अपने लिए कितना रहते चिंतित और दूसरा तो हमारे लिए होता मात्र तृण ।
तो हम लेन ड्राइविंग का उपयोग करें और सुरक्षित रहें साथ ही सड़क पर चलने वालों के प्रति समर्पित हो कर पुष्पित पल्लवित हो, ख़ुद जिए औरों को भी जीने का आनंद लेने दें