ऋषि परशुराम के सीता से बिआह प्रस्ताव।

महर्षि परशुराम के सीता से बिआह प्रस्ताव।
-आचार्य रामानंद मंडल।
महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण आ संत तुलसीदास कृत रामचरितमानस में सीता बिआह प्रसंग में महर्षि परशुराम के प्रवेश धनुष भंग के उपरांत धनुष यज्ञशाला मे प्रवेश होइत हय।
परंच संत लाल दास कृत मिथिला रामायण में एगो विस्मितकारी रहस्योद्घाटन हय कि महर्षि परशुराम स्वयंबर से पहिले जनक दरबार जनकपुर मे आयल रहतन। सीता के देखके राजा जनक से पुछलन इ दिव्य बालिका कोन हय।इ बालिका त विष्णु प्रिया लगैत हय।राजा जनक कहलन कि इ बालिका हमर पुत्री सीता हय।तब महर्षि परशुराम सीता से बिआह के इच्छा जतैलन आ सीता के मांग कैलन।
राजा जनक कहलन कि अभी उपयुक्त समय न हय। अपने तपस्या करे जायल जाव। उचित समय पर आयब। महर्षि परशुराम जनक से कहलन कि अंहा सीता के बिआह के लेल इ प्रस्ताव राखब के जे शिव धनु के प्रत्यंचा चढ़ा देत वोकरे से सीता के बिआह होयत। महर्षि परशुराम के इ गर्व रहैन कि अइ शिव धनुष के हमरा बिना कोनो इ काज न क सकय हय।वो तपस्या करे चल गेलन।
जौं राम शिव धनुष तोड़ के टंकार सुनके ऋषि परशुराम जनकपुर अयलन आ अपन क्रोध जतैलन।बाद मे अपन धनुष के प्रत्यंचा चढ़ाबे के परीक्षा राम से लेलन।राम के परीक्षा मे पास होयला पर रामावतार जान के पुनः तपस्या हेतु हिमालय चल गेलन।
लाल दास कृत मिथिला रामायण के पंक्ति द्रष्टव्य हय।
चौपाई –
तदनन्तर भृगुपति सम्प्राप्त।भेल जनकपुर भयसौं व्याप्त।
देखि विभव मिथिलाक अनूप।क्षणभरि छला परसुधर चूप।
मिथिलापति कयलनि सत्कार। क्षत्रिय नाशक जनिक कुठार।
देखल जानकिक अनुपम देह।सुरकन्याक भेल संदेह।
नृपसौ पुछल कहू ई नीकि। लक्ष्मी सन के कन्या थीकि।
बुझि पड़ देखयित हिनकर भाल। विष्णुवधु सनि विभव विशाल।
जनक कहल महि जोतल जखन। कन्या लाभ महीसौं तखन।
परशुराम कहलनि अगुताय।नृप हमरहिं कन्या देल जाय।।
कन्यारत्न हमर छथि योग्य। पाणिग्रहण करब सुख भोग्य।।
से सुनि कहल जनक महराज। अपने जाइत छी तप काज।।
अपने रहब समाधि लगाए।गिरि कंदर शत वर्ष बिताए।।
वनमे कन्या रक्षा हीनि।अबला रहतिह ककर अधीनि।।
अपने एखन विपिन गेल जाय।समय स्वयंबर आयल जाय।।
कहल परसुधर गर्वित वाक।सुनु नृप ई थिक शिवक पिनाक।।
जौं हमरा तपमे लग देरि।धनुमुख करब विवाहक बेरि।।
आबथि जखन वीर समुदाय।एहन प्रतिज्ञा देव सुनाय।।
जे एहि धनु पर तंतु चढ़ाव।सैह वीर सीताकां पाब।।
से सुनि जनक भेला आंनद। कहलनि बेश -बेश सानंद।।
परशुधरक मनमे ई भाव।बिनु हमरे के धनुष उठाव।।
दोहा –
परशुराम तप हित तखन,गेला हिमालय प्रांत।
योगासन मन ईश पद, लगला भजय एकांत।।
@आचार्य रामानंद मंडल सीतामढ़ी।