सुंदर छंद विधान सउदाहरण

“द्विगुणित सुंदर छंद ”
श्रद्धेय आचार्य #दयानंद_जड़िया “अबोध “जी की (कृति -“ऐसा वर दो ” से साभार विधान की जानकारी ली है )
#सुंदर_छंद को दुगना कर , #द्विगुणित_सुंदर_छंद आयोजित है। जब छंद को दुगना करके लिखा जाता है , तब महा /दीर्घ या द्विगुणित की संज्ञा दी जाती है |
द्विगुणित सुंदर छंद – 12 – 12 मात्रा , चार पद , प्रत्येक पद में
यति और चरणांत में दो गुरु २२ अनिवार्य है।
( गुरु को वाचिक दो लघु करना ××निषेध है |
चारों पदों की तुकांत सर्वश्रेष्ठ एवं , दो-दो पद तुकांत सामान्य
उदाहरण
माँ शारदे वंदना
विनय शारदे माता , आया शरण तुम्हारी |
हर अक्षर में चाहूँ , कृपा आपकी न्यारी ||
आप बुद्धि की दाता , करती हंस सवारी |
लिए हाथ में वीणा , धवल वस्त्र हो धारी ||
श्री गणेश वंदना
लम्बोदर कहलाते , पार्वती हैं माता |
पिता आपके भोले , शंकर जगत विधाता ||
रिद्धि-सिद्धि तुम देवा , जग के बुद्धि प्रदाता |
शरण सुभाषा चाहे , हो मंगल शुभ साता |
भारत माता की वंदना
जय जय भारत माता , अपना शीष झुकाता |
लिए तिरंगा झंडा , जन गण मन मैं गाता ||
तेरी शान निराली , जग को मैं बतलाता |
गीत प्रेम के सीखूँ , सबको यहाँ सुनाता ||
*****
राधा आकर बोली , कहाँ प्रेम में बाधा |
यह जीवन बिन तेरे , लगता मुझको आधा ||
सदा साथ हो तेरा , इसी भाव को साधा |
कहें श्याम तब राधा , तुझे न आए व्याधा ||
शिव शंकर बम भोले , लीला तेरी न्यारी |
कहलाते कैलाशी , नंदी बैल सवारी ||
रहे जटाओं गंगा , ब्रम्ह पुरी अवतारी |
नाग- चंद्र सिर शोभें, भक्त रहें बलिहारी ||
चली मटककर गोरी , बनकर चंद्र चकोरी |
कहे गाँव की नारी , है यह भाव विभोरी ||
दिखें कमल-सी आँखें,लाल गाल ज्यों रोरी |
होती रूप प्रसंशा, जन -जन करे निहोरी ||
सबका अपना पानी , कहते हैं यह ज्ञानी |
कोई है अभिमानी , कोई दाता दानी ||
कोई चलता चालें , रचता खोट कहानी |
कोई बन उपकारी ,जग में दिखता सानी ||
करते-करते बातें , कट जाती है रातें |
होती रस की चर्चा , मिल जाती सौगातें ||
षड्यंत्रों की चालें , सबको मारें लातें |
जिनसे बचते ज्ञानी, दूर रखें सब घातें ||
सुभाष सिंघई
~~~~~
मुक्तक -( द्विगुणित सुंदर छंद )
गौ और गंगा की वंदना (मुक्तक )
गौ माता-गंगा का, रखते मान सभी हैं|
जानें सब मर्यादा , रखते आन सभी हैं |
पावन इनको मानें , करते मिलकर पूजा –
करता नमन ‘सुभाषा’ , करते गान सभी हैं |
बजरंगी वंदना
महावीर बजरंगी , रामदूत कहलाते |
तन पर लाल लँगोटी , हम दर्शन में पाते |
साधक इनको चाहें , महिमा यह भी जानें –
राम नाम जो लेते , उन पर कृपा लुटाते |
द्विगुणित सुंदर छंद , मुक्तक
चौराहों पर चर्चा , जब होती नादानी |
सभी लोग चिल्लाते , कह देते अज्ञानी |
साधक दर्द छिपाता, बोल न मुख से बोले-
निकट सफलता लाता, बदले स्वयं कहानी |
खा जाते हम धोखा , बड़ा सिकंदर जानें |
करता मिलता चोरी, जिसे कलंदर मानें |
हरकत नटवर जैसी , खुल भी जाती आँखें –
फिर भी सब सुन लेते , उस बंदर के गानें |
जिसको सूरज मानें, निकले जब वह धब्बा |
काली हो करतूतें , ज्यों कीचड़ का डब्बा |
मद में भी वह भूले , चिल्लाए मैं ज्ञानी –
उसे सुभाषा जानों , है वह सड़ा मुरब्बा |
कभी देर से आँखें , जब जैसीं खुल जातीं |
लोग सजग हो जाते , घातें पास न आतीं |
मानव निपटा लेते , समाधान भी देखें –
पर मूरख कब चेतें , जलती पकड़ें बातीं |
छंद चोर अब देखा , गुरु का पहने बाना |
चोरी सीना जोरी , सीखा है गुर्राना ||
सुंदर छंद चुराया ,कहता उसे भिखारी –
दूजों से लिखवाता ,कहता निज का गाना |
सुभाष सिंघई
**********
गीतिका -( द्विगुणित सुंदर छंद )
समांत – आग , पदांत लगाए
जिस पर करो भरोसा , वह ही आग लगाए |
यह दुनिया अलबेली , भाई दाग लगाए |
जगह-जगह मक्कारी , छाया काला घेरा ,
गाते मिलते यारा , अपना राग लगाए |
मिलते कई फसाने , गुणा जोड़ है बाकी ,
करते हैं कुछ दोस्ती , अपना भाग लगाए |
जहाँ एक को खोजो , मिलते वहाँ हजारों ,
पर मिलते हैं यारो , गंदा झाग लगाए |
दिखते खिले बगीचे , पर मिलता है धोखा ,
मिले चमन में माली , फूलों आग लगाए |
आती है जब बारी , सोने को जब जाते ,
नींद शोर कर देती , उल्टा जाग लगाए |
कहता सुनो सुभाषा , कर दो बंद भरोसा ,
तुझे काटने बैठा , आशा नाग लगाए |
सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~
आलेख व उदाहरण – सुभाष सिंघई,
एम० ए० हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
पूर्व भाषाअनुदेशक , आई टी आई
मोबाइल – 9584710660
जतारा , टीकमगढ़ म०प्र०,
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~