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16 May 2024 · 1 min read

मन का प्रोत्साहन

उपवन खिली बहार थीं, आशाओं के पहने हार थीं
स्रोतस्विनी के धार में, अवलम्ब बनी पतवार थीं
निराशाओं में आश जगाने, वाली तेरी पहचान थीं
किलिष्ट कड़ी घटना को, सुलझाने वाली पहचान थीं

तेरे पथ पर बाधाओं के कितने रोड़े डालें थे
मीठे तरकस से छोड़े, कटु वचनों के भाले थे
हार नहीं माने थे जब थे, परिस्थितियों से घिरे हुए
मानवता के बल वेदी पर, आहुतियों में जरे हुए

दृढ़ संयम विश्वास बनाए, टूटे भ्रम के जाल
मित्र तेरे सब तेरे जैसे, रखते मेरा ख्याल
चिर काल विस्मृत स्मृतियों में, करता रहूँ ध्यान
अकृत्स्न भ्रमण सम्पूर्ण करूँ, ऐसा देना वरदान

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