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28 Apr 2024 · 1 min read

* छलक रहा घट *

** कुण्डलिया **
~~
छलक रहा घट प्रीति का, मन संवेदनशील।
स्वार्थ भरी कोई वहां, चलती नहीं दलील।
चलती नहीं दलील, प्यार होता है निश्छल।
नहीं देखता वक्त, साथ देता है हर पल।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, भाग्य के खुल जाते पट।
स्नेह भाव का खूब, जहां हो छलक रहा घट।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २८/०४/२०२४

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