हर एक मुलाकात, पैसे पर ठहर जाती है।

हर एक मुलाकात, पैसे पर ठहर जाती है।
मानो वो मोहब्बत नहीं, बिकने के लिए आती है।
कब तक मैं समझाऊँ, उन्हें नादान समझकर।
नादान बनकर आती है, तवायफ सी बिखर जाती है।
श्याम सांवरा….
हर एक मुलाकात, पैसे पर ठहर जाती है।
मानो वो मोहब्बत नहीं, बिकने के लिए आती है।
कब तक मैं समझाऊँ, उन्हें नादान समझकर।
नादान बनकर आती है, तवायफ सी बिखर जाती है।
श्याम सांवरा….