दोहा
चित्रगुप्त जी
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मानस ब्रह्मा पुत्र हैं, चित्रगुप्त शुभ नाम।
हर प्राणी के कर्म का, लेखा- जोखा काम।।
चित्रगुप्त जी का दिवस, गुरूवार है आज।
पहले शीश झुकाइए, दूजा फिर सब काज।।
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कर्म
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जिसका जैसा कर्म है, उसका वैसा भाग्य।
बिना कर्म होता कहाँ, जीवन का वैराग्य।।
भाग्य कर्म के बाद ही, देता सबका साथ।
बिना कर्म के भाग्य भी, नहीं थामता हाथ।।
मन में जब विश्वास हो, फलदायक तब कर्म।
जान लीजिए आप भी, जीवन का ये मर्म।।
नहीं कर्म अपने जिसे, होता है विश्वास।
देती उसको घात है, छोटी -छोटी आस।।
दोष नहीं देना कभी, सबके अपने कर्म।
सबका अपना भाग्य है, सबका अपना धर्म।।
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फागुन/होली हुड़दंग
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आया फागुन मास है, लेकर नव उत्साह।
होली के हुड़दंग का, चढ़ने लगा उछाह।।
उड़ने लगे हैं इन दिनों, रंग अबीर-गुलाल।
बिना किसी संकोच के, रंगे जा रहे गाल।।
फागुन मास में चढ़ रहा, सबको बड़ा सुरूर।
सब ही अपने लग रहे, भला कौन है दूर।।
चढ़ने लगा है इन दिनों, सबको नया बुखार।
पहले रंग हैं पोतते, बाद में प्यार दुलार।।
समय साथ ही खो रहा, फागुन का उत्साह।
पहले जैसा अब कहांँ, रंगों भरा उछाह।।
होली के हुड़दंग से, दूर हो रहे लोग।
रंगों के त्योहार को, लगे मानने रोग।।
रंगों के इस पर्व को, करना मत बदरंग।
रंग खेलिए प्यार से, करिए सबको दंग।।
सूखे रंगों का करें, होली में उपयोग।
कीमत जल की जानिए, बढ़े नहीं कर रोग।।
मर्यादा में खेलना, रंग अबीर-गुलाल।
दीन- दुखी बीमार का, मत रँगना तुम गाल।
रिश्तों का भी कीजिए, आप सभी सम्मान।
रंगों के त्योहार का, मत करना अपमान।।
होली प्रिय त्योहार है, जान रहे हम आप।
सभी मिटाएं रंग से, मन के सब संताप ।।
फागुन का संदेश है, होली आई पास।
रंगों का त्योहार दे, सबका है विश्वास।।
जबरन किसी कपोल पर, नहीं लगाओ रंग।
खुशियों के त्योहार में, घोल रहे क्यों भंग।।
बैर -भाव सब भूलकर, खूब करो हुड़दंग।
प्रेम प्यार से पोतिए, मिलकर होली रंग।।
अभी अभी यमराज जी, आये मेरे द्वार।
रंग पोत कहने लगे, चुकता हुआ उधार।।
होली पर यमलोक में, मचा हुआ हुड़दंग।
एक एक को पकड़कर, लगा रहे सब रंग।।
बिस्तर पर यमराज को, मैंने पोता रंग।
दर्पण में निज देखकर , हुआ बहुत मैं दंग।।
सुबह-सुबह यमराज जी, पहुँचे प्रभु के धाम।
रंग पोत प्रभु गाल पर, भोला बन किया प्रणाम।।
रंग अबीर-गुलाल का, करिए सब उपयोग।
प्रेम प्यार सद्भाव का, करिए नव्य प्रयोग।।
हंगामा मत कीजिए, रखिए होली मान।
होली के त्योहार का, रंग बिरंगा ज्ञान।।
होली पर यमराज जी, दुखी बहुत हैं आज।
छुट्टी में भी पड़ रहा, करना उनको काज।।
छुट्टी में भी पढ़ रहे, बच्चे हैं मायूस।
अभी परीक्षा दौर है, किसको दें हम घूस।।
दहन होलिका में करो, अपने सब छल छंद।
ईर्ष्या नफरत द्वेष सब, आज कीजिए बंद।।
कुटिल होलिका का हुआ, बंद सभी अध्याय।
आप सभी हम जानते, जो इसका पर्याय।।
होली की शुभकामना ,स्वीकारें श्रीमान।
होली के संदेश का, समझूँ नहीं विधान।।
दंभ आप सब कीजिए, अवसर आया आज।
निंदा नफ़रत द्वैष के, संग होलिका साज।।
होली पर मेरा तुझे, रंग भरा आशीष।
खुशियों की सौगात हो, मिले ईश बख्शीश।।
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हिंदुस्तान – 2221
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अपने हिंदुस्तान का, आज चमकता नाम।
समय साथ अब बन रहा, नित नूतन ये धाम।।
इज्जत से अब ले रहा, विश्व हमारा नाम।
मोदी ने दिखला दिया, हिंदुस्तानी काम।।
हमको हिंदुस्तान का, ऊँचा करना भाल।
कहलायें तब गर्व से, अपनी माँ के लाल।।
दुख – सुख में होता खड़ा, सदा हमारा देश।
सत्य सनातन धर्म है, मानवता परिवेश।।
बड़े ध्यान से सुन रहे, हमको दुनिया देश।
जब होते हैं कष्ट में, या कोई हो क्लेश।।
उम्मीदों से देखती, सारी दुनिया आज।
केवल हिंदुस्तान ही, बचा सकेगा लाज।।
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विविध
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करें साधना धैर्य से, तभी मिले परिणाम।
वरना सब बेकार है, व्यर्थ आपका काम।।
बिन साधन होती कहाँ, अपना कोई काम।
चाहे जितनी साधना, जपो राम का नाम।
अंधा बाँटे रेवड़ी, बड़े मजे से आज।
और मजे वो कर रहा, दूजा नहीं है काज।।
राम नाम के साथ ही, साधन की दरकार।
करते रहिए साधना, बनकर के गुमनाम।।
सोच समझ पहले करें, चाह रहे क्या आप।
तभी साधना में रमें, लेकर ईश का नाम।।
मंगल को मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।
चाहे जैसे भी करो, बदलो भले विधान।।
हाथ जोड़ विनती करूं, खड़ा आपके द्वार।
सबसे पहले आपका, आया मुझे विचार।।
अपनों पर भी अब कहाँ, हमको है विश्वास।
कारण सबको पता है, करना फिर क्यों आस।।
कौन मानता आपको, जिसके हैं हकदार।
स्वार्थ सिद्धि के खेल में, फँसना है बेकार।।
आप निहत्था जानकर, करना नहीं प्रहार।
आत्मशक्ति उसका बड़ा, सहना मुश्किल वार।।
अपनी लीला देख लो, जिसका नहीं प्रभाव।
जहाँ आम अरु खास के, होता मध्य दुराव।।
साधन अरु संपन्न हो, इसका बड़ा गुरूर।
सबको पता है मित्रवर, तुम हो मद में चूर।।
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मोबाइल
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मोबाइल पर हो रहा, आज बड़ा अन्याय।
बेचारा वो है बना, कोई नहीं सहाय।।
मोबाइल भी हो रहा, यारों बड़ा अधीर।
रंग खेलना चाहता, सुनिए उसकी पीर।।
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नारी
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आदिशक्ति का रुप है, नारी बड़ी महान।
इनसे पार न पा सके, कोई सकल जहान।।
नारी तेरे रूप का, ये कैसा विज्ञान।
माँ पत्नी बेटी बहन, सबका अलग विधान।।
पत्नी पीड़ित यमराज जी, दुखी बहुत हैं आज।
छुट्टी लेकर कर रहे, घर के सारे काज।।
माँ पत्नी के बीच में, पिसता पुरुष समाज।
समझ नहीं आता उसे, बचे कौन विधि लाज।।
बहना लड़ती नित्य ही, भैया जी हैरान।
छेड़-छाड़ करती सदा, फैलाती मुस्कान।।
पति-पत्नी में हो रहा, रोज-रोज ही द्वंद्व।
आप बताओ अब हमें , कैसे हो यह बंद।।
बहन बेटियाँ नोचती, मेरे सिर के बाल।
बड़ी कृपा यमराज की, बची हुई जो खाल।।
नारी महिमा का करें, नित्य सभी गुणगान।
भोर सायं यमराज भी, करते यही बखान।।
महिलाओं के झुंड में, सन्नाटे का राज।
हेडलाइन है बन गया, अखबारों में आज।।
बदले नारी मूड निज, बदले पल-पल रंग।
इनके चाल चरित्र से, कंप्यूटर भी दंग।।
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व्यवहार
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वाणी अरु व्यवहार में, भेद रखें जो लोग।
उनके जीवन का यही, बने कलंकित रोग।।
हम सबके व्यवहार में, समता का हो भाव।
कहना मेरा मानिए, कभी न कोई घाव।।
प्रेम प्यार व्यवहार का, कोई नहीं विकल्प।
करना हमको मित्रवर, बस केवल संकल्प।।
मातु-पिता अब हो रहे, दीन – हीन लाचार।
कारण इसका एक है, बच्चों का व्यवहार।।
वाणी में कटुता भरी, सबके मन में आज।
बनता है व्यवहार भी, जैसे कोढ़ में खाज।।
सुधीर श्रीवास्तव