क्यों सोचता, है तू अकेला

क्यों सोचता, है तू अकेला
आवागमन जगत का मेला
कौन यहां पर साथ रहा है
छंट जाता मतलब का रेला।
२
शंखनाद सा मन है मेरा
औ’ गंगा सा तन है तेरा
संकल्पों के लाख आचमन
धन भी तेरा, धन भी मेरा।।
सूर्यकांत
क्यों सोचता, है तू अकेला
आवागमन जगत का मेला
कौन यहां पर साथ रहा है
छंट जाता मतलब का रेला।
२
शंखनाद सा मन है मेरा
औ’ गंगा सा तन है तेरा
संकल्पों के लाख आचमन
धन भी तेरा, धन भी मेरा।।
सूर्यकांत