इंसानियत के आँसू

चोरों के इस जहाँ में इंसाफ़ की उम्मीद छोड़ दो !
जहाँ , नेता ,अफसर, पुलिस , पैरोकार, मुंसिफ़
सब चोर हों ,
वहाँ आम आदमी के हक़ में
क्यूँकर फैसला हो ,
जहाँ सब कुछ बिकता हो तो
इंसाफ़ का बाज़ार भी
क्यों न लगेगा ?
मुजरिम धड़ल्ले से खुले घूमेगें ,
आम आदमी डरा, सहमा, दुबका रहेगा ,
आज़ादी की हक़ीक़त एक सपना बनकर रह जाएगी ,
इंसानियत ख़ून के आँसू बहाती सिसकती रह जाएगी।