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22 Mar 2025 · 1 min read

अर्धांगिन ( शीर्षक )

गालों पर रंगों का मलना
आकाश होना है

तेरे होठों से उठ रहे फाग
भोर का सूर्योदय होना है

गोरे तन से रंगों का छंटना जैसे
नूपुर मंगनी में वर-वरण को आई

प्राची-प्रतीची के संगम में
मेहंदी रंग‌ के इन्द्रधनुष ब्याह-मंडप में पधारी

सुंदर सुंदर चित्र दिखे हैं तुम्हारे घेरे में
चन्द्रमा होने के जैसा तुम हो

सुन्दरियों के गोल-सुडौल बदन में
लिपटे साड़ी-ब्लाउज के अंगों में भंग है

तुममें थिरकती देह, थिरकता मन में
मृदंग पर तालों की नृत्य करती अप्सराएँ

रंगों का समुद्र होना मानों
तुम हो, देश है, सूर्योस्त होने को है।

दोनों के बीच खालों का उतरना
मधुयामिनी, अंतरिक्ष, अर्धांगिन भव है

वरुण सिंह गौतम

#होली महोत्सव पर विशेष

14 मार्च 2025

Language: Hindi
25 Views
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