अबला न कहलाएगी …
अबला न कहलाएगी …
एक बिंदु सा
अस्तित्व है मेरा
गिर जाऊं तो
मिट्टी में विलुप्त होना
निश्चित है मेरा //
बिंदु
आदि है
बिंदु
अनंत है
बिंदु हर रेखा का
आरम्भ है
बिंदु ही
हर रेखा का अंत है //
इसकी शक्ति से
कोई अनभिज्ञ नहीं
फिर भी
अपने अहम् के आगे
उसे गौण माना जाता है //
इस बिंदु में
कहीं प्रेम की लहरें हैं
तो कहीं
प्रतिशोध की ज्वाला है //
देख दर्पण !
मुझे अपना प्रतिबिम्ब न दिखा
मुझे किसी रूप के श्रृंगार का
अभियुक्त न बना //
जिस दिन
मैं
किसी अखबार की सुर्खी में
जलता हुआ नज़र न आऊँ //
जिस दिन
मैं
किसी अलता लगे
पाँव वाले माथे का
गौरव बन जाऊं //
जिस दिन
मैं
किसी पुरुष के
पौरुष का शिकार
होने से बच जाऊं //
जिस दिन
मैं
हर नज़र में
नारी के लिए
आदर भाव का नीर
तैरता पाऊँ //
जिस दिन
मैं
दहेज़ की ज्वाला से
नारी को मुक्त पाऊँ //
उस दिन
हाँ,
उस दिन
सच कहता हूँ
ऐ दर्पण !
मैं
बिंदु से बिंदिया
बन जाऊंगा
नारी के
गौरवान्वित माथे पर
बिंदिया के अस्तित्व की
अमिट पहचान लिख
स्वयं को सुशोभित कर पाऊँगा
तब
ऐ दर्पण
तू मुझे
मेरा प्रतिबिम्ब दिखाना
जब
बिंदु बिंदिया में समाहित हो
शक्ति बन जाएगा
बिंदिया
अपनी शक्ति का
परचम फहराएगी
नारी
शक्ति बन जाएगी
दुनिया में फिर कभी वो
अबला न कहलाएगी //
सुशील सरना