बात सच्ची अगर कही होती

बात सच्ची अगर कही होती
हर किसी को भली लगी होती
काश मिलता बहार का मौसम
हर कली यूं न अधखिली होती
गर मुहब्बत को वो समझ लेते
दिल में नफ़रत नहीं पली होती
दिल में होती न कोई बेचैनी
जब मुहब्बत की ज़िन्दगी होती
कोई मतलब निकाल भी लेते
मेरी तहरीर गर पढ़ी होती
देखना छोड़ते न ख़्वाबों को
कुछ हक़ीक़त अगर मिली होती
ज़िन्दगी से गिला नहीं होता
मेरे होंठो पे गर हंसी होती
ज़िक्र होता जो बरसरे महफिल
मेरी आंखों में क्यूं नमी होती
रूबरू “शाद” वो जो आ जाते
मुझको हासिल ख़ुशी हुई होती
डॉ० फ़ौज़िया नसीम “शाद”