दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
बदल गए हैं आजकल, इस जीवन के अर्थ ।
मौज मनाओ आज बस, बाकी सब है व्यर्थ।।
क्षणिक क्षुधा अवधारणा, आज हुई जीवंत ।
भोग पिपासा आज की, दुविधा बनी ज्वलंत ।
भोग सभ्यता आज के, नव युग की पहचान ।
मुक्त आचरण तोड़ता, जीवन के प्रतिमान ।।
सुशील सरना /13225