प्रभु राम का घर है ये प्यारे

अयोध्या की सुन्दर सहर है ये प्यारे।
राघव के नाम का शहर है ये प्यारे।
कल-कल निनाद कर अनवरत बह रही है,
पतित पावन सरयू लहर है ये प्यारे।
देखने का नजरिया सभी का अलग है,
भक्ति की अलग एक नज़र है ये प्यारे।
फूलों से सजा जो रास्ता दिख रहा है,
श्री राम मन्दिर की डगर है ये प्यारे।
कानों में मधुर मिसरी सी घुल रही है,
भक्ति रस में डूबी बहर है ये प्यारे।
यहीं हुए पैदा मर्यादा पुरुषोत्तम,
चक्रवर्ती दशरथ का नगर है ये प्यारे।
पंचकोसी परिक्रमा राम नाम वृक्ष स्थित,
कदम की प्रजाति का शजर है ये प्यारे।
सिया संग प्रभु यहाँ झूला झूलते थे,
मनोरम मणि पर्वत शिखर है ये प्यारे।
बना भव्य मन्दिर आज मेरे राम का,
दिल में जो दबी थी कसर है ये प्यारे।
मूक भी अब तो राम नाम बोलता है,
राम के भक्तों का कहर है ये प्यारे।
कोसलपुरी साम्राज्य की राजधानी,
हमारे प्रभु राम का घर है ये प्यारे।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)