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10 Jun 2024 · 1 min read

गिरगिट रंग बदलने लगे हैं

जो कहते थे मसीहा उसे,
अब उसे ही आंखें दिखाने लगे हैं
जो बह रहे थे दरिया के साथ
अब किनारे लगने लगे हैं
थोड़ी सी हवा क्या बदली कि
गिरगिट रंग बदलने लगे हैं
जब तक उम्मीद थी उनको
वो साये की तरह साथ चलते थे
जयकारों का उदघोष करते और
उनकी तारीफ़ किया करते थे
अब बदल गई परिस्थितियां
अब वो उनसे पीछा छुड़ाने लगे हैं
हां, गिरगिट रंग बदलने लगे हैं
सारी उम्र लड़ा उनके लिए
लेकिन अब कदम थकने लगे हैं
क्योंकि उनपर भी अब
वक्त के थपेड़े पड़ने लगे हैं
जो साथ थे हौसला बनकर उनका
वो भी अब नया सहारा ढूंढने लगे हैं
हां, गिरगिट रंग बदलने लगे हैं।
थी कभी जिस चमन में बहार
आज फूल उसके जो मुरझाने लगे हैं
मंडराते थे जहां भंवरों के झुंड
वो भंवरे भी आने से अब कतराने लगे हैं
जैसे ही समय ने चक्र बदला
सब उसे दूध से मक्खी की तरह फेंकने लगे हैं
हां, गिरगिट रंग बदलने लगे हैं।

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