सोलह श्रृंगार कर सजना सँवरना तेरा – डी. के. निवातिया
सोलह श्रृंगार कर सजना सँवरना तेरा,
जान लेता है चूड़ियों का खनकना तेरा !
महका देता है इन फिजाओं को रंगत,
गुलशन के फूलों के जैसे महकना तेरा !
जब आती हो तुम ये जुल्फ़े बिखराकर,
बिन मौसम लगे है सावन बरसना तेरा !
इस मासूम दिल को कंपित कर देता है,
समुन्द्र की लहरों सा तेज गुजरना तेरा !
तारीफ में तेरी अब और क्या कहेगा ‘ धरम’
बे-मौत मार देता बन-ठनकर निकलना तेरा !!
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डी. के. निवातिया