*कविता ( चल! इम्तहान देते हैं )*

भय को भगाकर
पंखों को फैला कर
हौसलों को उड़ान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
तू नारी है या है नर
दिखा अपना हुनर
श्रेष्ठ को सम्मान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
सत्य को पकड़
चुनौतियों से लड़
खुद को पहचान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
कर लें अपना कर्म
यही है हमारा धर्म
फल तो भगवान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
:- आलोक कौशिक (साहित्यकार)