Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Aug 2024 · 4 min read

मेरी हकीकत…. सोच आपकी

शीर्षक – मेरी हकीकत… सोच आपकी
*****************************
गुमान न कर ए इंसान तू फरिश्ता नहीं है। बस यही पाया और यही छोड़ कर जाना है। बस हकीकत तो मेरी आपकी सबकी होती है बस सोच आपकी अलग-अलग होती हैं। यह कहानी कहे, बायोग्राफी कहें, या लेख कहे, बस लेखक का तो दृष्टिकोण समाज की सेवा और कुदरत के साथ रंगमंच की रंगरलियां या कठपुतलियां हम सभी होते हैं।
बस शब्द जो दिल और मन को छू जाएं हम वाह वाह करते हैं। वरना कमियां निकालना तो हमारी आपकी सोच होती हैं। आज की कहानी काल्पनिक चरित्र और पात्रों के रंग में रची बसी है।बस हकीकत मेरी और सोच आपकी रहेगी और उम्मीद के साथ आशाएं कि आपको आज की इस कहानी में हम हकीकत के साथ पढ़ रहे हैं।
यह कहानी हमारे आपके परिवार की हकीकत और समाज के साथ साथ बहुत कुछ कहतीं हैं।हम सभी का परिवार होता हैं। उस परिवार को हम सभी जीवन यापन के लिए तरह तरह के हालातों के रंग में संसारिक मोह-माया और सुख सुकून के लिए हम सभी ने जाने तरह तरह की जद्दोजहद करते हैं। बस हम सभी एक दूसरे को अजनबी समझते हैं और जीवन जीने के लिए त्याग और समर्पण या फिर झूठ फरेब का सहयोग भी लेते हैं।
बस समय बलवान होता है और हम सभी उस समय के साथ-साथ अपने जीवन को सफल बनाने के प्रयास करते हैं। और कठिन परिस्थितियों में भी हम सभी अपने जीवन के संघर्षों में जीवन जीते हैं। बस हम सदा अपने पक्ष को ही सही समझते हैं।
आज की हकीकत एक हंसते खेलते परिवार से शुरू होती हैं। बस सोच आपकी या समाज की जो आप और हम होते हैं। परिवार की शुरुआत एक नयी नवेली बहू बेटे की शादी से होती है जो कि एक माता-पिता भी बनाते हैं। वो बहु जिसको हम बहुत लाड़ प्यार से बेटे की बहु बनाकर लाते हैं। अब वह बहु भी पहले बेटी का संसार छोड़ कर एक गृहस्थ आश्रम में जीवन शुरू करतीं हैं।
वह बेटी जो बहुत बनती हैं। तब अब उसका घर उम्र के पड़ाव के साथ-साथ बेटी से बहु का सफर शुरू करतीं हैं और न जाने कितने सपने और अरमान उसके मन भाव रहते हैं। वह जिस घर में आतीं हैं वहीं वह नये रिश्ते नाते भी समझतीं हैं। बस जो सास और ससुर बने होते हैं उनकी भी अपनी मानसिकता और सोच होती हैं। बस यही से शुरू सफर होता हैं। बहु बेटे का इम्तिहान जो बहु के साथ-साथ बेटे का भी दुविधा और इम्तिहान होता हैं। माता पिता के साथ-साथ उनकी धन संपत्ति और शोहरत का सहयोग भी होता हैं।
बहु बेटे के साथ-साथ उस घर की बेटियों का भी परिचय एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता हैं। बस यही से तालमेल और मेरी हकीकत और आपकी सोच की शुरुआत होती हैं। अब समझदारी से मां फिर अपने अहम के साथ रहतीं हैं। बहु अपना हक ससुराल में समझतीं हैं। और बेटा माता-पिता और बहनों के साथ अपनी पत्नी के साथ नये रिश्ते की सोच जो जन्म लेने के लिए एक नया सवेरा देता हैं। अब वह बेटा हो या बेटी हमारे ही शारीरिक संबंध का हिस्सा जन्म लेता हैं। और हम बहु बेटे का परिवार शुरू होता हैं। यही घर में सास ससुर के रिश्ते के साथ ननद भाभी का रिश्ता भी करवट लेता हैं।
अब उम्मीद और आशाओं की शुरुआत होती हैं। और केवल बहु से उम्मीद घर की जिम्मेदारी और ससुराल की सोच संस्कार और मायके की राह भी रहती हैं। यही से परिवारवाद और परिवारिक सोच जन्म लेती हैं। बस हमारी उम्मीदें और सोच हमारी बहुत बेटे और सास ससुर ननद की इज्जत और बहु का हक सम्मान के विषय और विचारों का सहयोग ही एक हकीकत और सोच हमारी होती हैं।
अब परिवार में बेटे बहु का हक और किरदार ही मुख्य कारण होता हैं। फिर भी सास बनी मां अपनी बेटी को महत्व देती हैं। आपकी सोच और समझ ही मेरी हकीकत को बयां करें। जो बेटी बहुत बनकर आती हैं। वह आपके बेटे की जीवन संगिनी हैं। तब जो उस घर की बेटियां अगर हैं। तब उनको भी सोचना चाहिए कि उनको भी किसी घर की बहु बनकर जाना हैं। तब समाज और हकीकत बताएं कि बहु बेटे पराए क्यों हो जाते हैं।
मेरी हकीकत और समाज या आपकी सोच बताएं जिस घर में बहु आयी तब वह हक कहां समझे और उस बेटे का कसूर बताएं जो कि बहुत से जुड़ा किरदार हैं। और ऐसे खुशहाल परिवार और जवान पोता एक मात्र सहारा बहु बेटे का कैंसर से मर जाता है। तब परिवार में बहु बेटे का संसार उजड़ जाता हैं। तब वही माता पिता बहनों के लिए भैया भाभी दुश्मन हों जाते हैं। केवल सभी का अपना स्वार्थ परिवारिक संपत्ति का लालच रहता हैं।‌
बहु बेटे के जीवन को भूल जाते हैं उधर ससुर की मृत्यु के बाद सांस अपना तिर्याचरित्र दिखाती हैं। एक ससुर रुप का पिता जीवित था। तब संपत्ति और पेंशन विवाद नहीं था परंतु घर का मुख्या का सहयोग होता हैं। बस घर संपत्ति विवाद न्यायालय और तरह तरह की साज़िश बहु बेटे के जवान बेटे की मृत्यु का कोई दुःख बुआ और दादी को नहीं होता हैं। बस हम सभी संपत्ति और पेंशन धन की लूट कहे या हड़पना चाहते हैं। बस उस बहु बेटे को एक तकमा कि सेवा नहीं कर रहे हैं। कहानी मेरी हकीकत और आपकी सोच पर आधारित है।
आजकल के बहु-बेटियां के प्रकरण के साथ साथ यह कहानी समाज के न्याय के साथ भी उचित सलाह और न्याय चाहती है।
*************************
नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

Language: Hindi
68 Views

You may also like these posts

दूरी जरूरी
दूरी जरूरी
Sanjay ' शून्य'
मैं अकेला महसूस करता हूं
मैं अकेला महसूस करता हूं
पूर्वार्थ
बरखा में ऐसा लगे,
बरखा में ऐसा लगे,
sushil sarna
हमने क्या खोया
हमने क्या खोया
Dr fauzia Naseem shad
3610.💐 *पूर्णिका* 💐
3610.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
कभी कभी युही मुस्कुराया करो,
कभी कभी युही मुस्कुराया करो,
Manisha Wandhare
हे कलमकार
हे कलमकार
sushil sharma
हल्की बातों से आँखों का भर जाना
हल्की बातों से आँखों का भर जाना
©️ दामिनी नारायण सिंह
शुभांगी छंद
शुभांगी छंद
Rambali Mishra
ज्ञान दायिनी
ज्ञान दायिनी
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
मैं पतंग, तु डोर मेरे जीवन की
मैं पतंग, तु डोर मेरे जीवन की
Swami Ganganiya
वो हमको देखकर मुस्कुराने में व्यस्त थे,
वो हमको देखकर मुस्कुराने में व्यस्त थे,
Smriti Singh
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
Neha
*Move On...*
*Move On...*
Veneeta Narula
बाजारवाद
बाजारवाद
Punam Pande
HOW to CONNECT
HOW to CONNECT
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दोस्ती की कीमत - कहानी
दोस्ती की कीमत - कहानी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मैं तुझ सा कोई ढूंढती रही
मैं तुझ सा कोई ढूंढती रही
Chitra Bisht
* थके नयन हैं *
* थके नयन हैं *
surenderpal vaidya
*ठगने वाले रोजाना ही, कुछ तरकीब चलाते हैं (हिंदी गजल)*
*ठगने वाले रोजाना ही, कुछ तरकीब चलाते हैं (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
P
P
*प्रणय*
समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, कुछ समय शोध में और कुछ समय
समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, कुछ समय शोध में और कुछ समय
Ravikesh Jha
मैंने आईने में जब भी ख़ुद को निहारा है
मैंने आईने में जब भी ख़ुद को निहारा है
Bhupendra Rawat
"विज्ञान और मुस्कान"
Dr. Kishan tandon kranti
करो देश से प्यार
करो देश से प्यार
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
है शामिल
है शामिल
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
माना   कि  बल   बहुत  है
माना कि बल बहुत है
Paras Nath Jha
खामोश दास्ताँ
खामोश दास्ताँ
Ragini Kumari
प्रकृति से हमें जो भी मिला है हमनें पूजा है
प्रकृति से हमें जो भी मिला है हमनें पूजा है
Sonam Puneet Dubey
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Arvind trivedi
Loading...