दौलत के चक्कर में जो है बौराए।

खूब कमाया खूब छुपाया,
तिज़ोरी भर भर कर नींद उड़ाया,
लॉकर शॉकर बैंको में भी,
खाते में रुपया खूब भर पाया।
कृपण बन गए इसके चक्कर में,
जीवन फकीरों सा है जिया,
खाया पिया न स्वास्थ बनाया,
लालच के हाथों खुद ही मिट गए।
गाड़ी बंगला और आभूषणों में,
मन माफिक कुछ ने उड़ाया,
मोह माया के चक्कर में फंस गए,
वास्तविक जीवन का आनंद न उठाया।
दौड़ दौड़ के रुपयों के पीछे,
जिसने इसको मकसद बनाया,
आज यहाँ आया कल कही और गया,
धन दौलत की ये माया समझ न पाया।
सुख और समृद्धि कैसे आए,
भूख प्यास जो मिट न पाए,
संतुष्टि और शांति खोज न पाए,
दौलत के चक्कर में जो है बौराए।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।