चरणों में नित शीश झुकाऊं

तेरी महिमा निशदिन गाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
मंगलमूरति नाम तुम्हारा
काटो प्रभु जी कष्ट हमारा
हाथ जोड़ कर तुम्हें मनाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
सकल अमंगल विघ्न-विनाशक
बल-बुद्धि, विद्या, ज्ञान प्रकाशक
निज गीतों से तुम्हें रिझाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
रिद्धि- सिद्धि के संग विराजे
मूषक वाहन अद्भुत साजे
फल मोदक का भोग लगाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
सब वेदों के प्रभु हो ज्ञाता
सारे जग के भाग्यविधाता
सच्चे मन से तुमको ध्याऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
प्रथम पूज्य हे गौरी नंदन
तुम्हें लगाऊं हल्दी चंदन
पीत वस्त्र तन तुम्हें उढ़ाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
करो कृपा हम पर गणराया
घर पर पड़े न दुख का साया
चरण- शरण मैं तेरी पाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
हृदय भक्ति प्रभु अपनी भर दो
सेवा का हमको अवसर दो
बैठ चरण प्रभु रोज दबाऊं
चरणों में नित शीश झुकाऊं
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)