संचित अभिलाष
///संचित अभिलाष///
संचित अभिलाषा के पल्लव,
तुम्हें समर्पित तुम्हें समर्पित।
हत-दर्प मति-उल्लासित गर्वित,
विजन व्यथा उर में है पुष्पित।।
प्रिय प्राण तुम्हें खोजते ,
फलित पुष्प कुंज सस्मित।
नवल चित्त उत्साह भरा,
शून्य में बैठा है कीलकित।।
रश्मि का आलोक पाऊं ,
चिर विरह में प्रणय गाऊं।
चित्त मेरा म्लान उन्मित,
सघन अभ्र विस्तीर्ण होकर,
विजन पथ में गुनगुनाऊं ।।
प्रिय प्राण मेरे गीत गुंजन,
प्रीत का शुचि उदधि संबल।
हो सके वह आज अर्जित,
तापस मन सत्व उज्जवल।।
चिर उदित विभावरी मैं ,
प्रिय प्राण से प्रेम बंधित ।
संचित अभिलाष कोंपल,
मन भुवन रचित कल्पित।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)