टले नहीं होनी का होना
एक कमाता छ: खाते थे
दो कमाएं, और को धायें
पैसा और ख्याति तृष्णाएँ
सदा सुहागिन रहना चाहें ।
टूट रहे कच्चे धागे से
पीढ़ी दर पीढ़ी के नाते
कभी बुलंदी छूये घराने
मकड़ जाल में गोते खाते ।
भाई और बहिन घर घर की
सभी कमाऊ बनाना चाहें
जीवन सादा मितव्ययी पथ
भूल से भी नही अपनाएं ।
घर को स्वर्ग बनाने वाले
नीति न शिक्षा संस्कार हैं
भौतिकता से बचा न कोई
सबके अपने अहंकार हैं ।
ऐसे ही चलनी है दुनिया
खोना पाना हँसना रोना
लगा हुआ है लगा रहेगा
टले नहीं होनी का होना ।