*गोरा (मैथिली प्रेम संवाद)*

गोरा (मैथिली प्रेम संवाद)
अहां झील क’ ओहिपार रहू ,
हम बसब एहि पार..
विवाह क’ ई प्रथम शर्त थिक,
बढ़ल रहत हमर प्यार..
प्रेमी कहलक प्रेमिका सऽ ,
पगला गेलीह तू किएक ..
जब हम बिहा करब तोरा सऽ ,
तऽ दूर हम रहब किएक..
प्रेमिका तब कहलक प्रेमी सऽ,
संग रहब खतरा सऽ खाली नञ..
सदा संग रहबे, ई उचित नहि होयत,
आकाश तत्व परस्पर बाधित होयत..
प्रेम हमर बनल रहए बस,
प्रेम क’ उच्च आदर्श,स्थापित होयत..
स्वतंत्रता सेहो बनल रहत,
आ प्रेमपुष्प प्रस्फुटित होयत..
कखनहुं नेओँता हम देब अहांकऽ,
कखनहुं अहां हमरा नेओँता देब..
कखनहुं नौका विहार करब संगे,
मिलकऽ प्यार क’ बात करब..
भोर भिनसर म’ टहले निकलब ,
भेंट होयत जेऽ अहां सऽ अचानक..
मनक पंखुड़ी खिलकेऽ नाचत,
प्रेम कथा म’ई सफल कथानक..
तन क’ गुलामी नहिं करब हम ,
परस्पर स्नेह आ श्रद्धा बाटब..
मन मलिन्ह कहियौ नञ करब हम,
प्रेम क’ नव परिभाषा बांचब..
प्रेम में गिरब कहियौ नञ नीचा ,
दूर क्षितिज के सेहो लांघब..
अलौकिक प्रेम मे तिरोहित भऽ केऽ ,
अपरिमित व्योम के हम सीमा मापब..
गुरुदेव टैगोर के उपन्यास ‘गोरा’ में,
गोरा, सुचरिता क ई संवाद सुनु.
प्रेम क’ व्याख्या कतेक नीक अछि,
एहिखन देस में बनल प्रासंगिक अछि..
मौलिक आओर स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९/०३/२०२५
चैत्र ,कृष्ण पक्ष,पंचमी तिथि ,बुधवार
विक्रम संवत २०८१
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