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31 May 2024 · 1 min read

अर्धांगनी

पहचान ही न पाये कि
मैं तुम्हारी जीवन संगीनी हूँ,
तुम्हारी अर्धांगिनी हूँ,
कभी महसूस ही नही किया
कि तुम्हारे अस्तित की पूरक हूँ,
बस महसूस किया तुमने
महज एक औरत की तरह,
अपनी जरूरत पूरी करने का ,
समझा तो बस एक ज़रिया,
घर की एक सजावट की तरह,
क्या पत्नी होने से
खुद का वजूद खो जाता है?
संस्कारों और जिम्मेदारियों
से बस एक हो जाता है!
पहचान ही न पाये तुम
कि तुम्हारे अधूरेपन
की सम्पूर्णता हूँ मैं,
अगर मेरा अस्तित्व निखरता है,
तो तुम्हारी सम्पूर्णता भी समृद्ध होती है।
पूनम समर्थ (आगाज़ ए दिल)

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