आधुनिक होली का त्यौहार

होली का त्यौहार आज बेहाल है,
चेहरों पर अब न रंग न ग़ुलाल है।
मोबाईलो पर सब चिपटे हुए है,
अपने घरो मे सब सिमटे हुए है।।
होली मे बच्चों की न खिलकारी है
उनके हाथो मे न अब पिचकारी है।
किताबों के बोझ से वे दबे हुए है,
परीक्षा की तैयारी मे वे लगे हुए है।।
होली मे अब बनते नहीं पकवान है,
होली मे आते नहीं कोई मेहमान है।
होली की फीकी मुस्कान दे रहे है,
होली की बस खानापूर्ति कर रहे है।।
होली मे अब न दोस्तों का संग है,
अब कहीं भी घुटती नहीं भंग है।
परिवारों मे अब न कोई उमंग है,
महंगाई के कारण सब लोग तंग है।।
होली मे अब न कोई हुड़दंग है,
भाभी देवर का न कोई संग है।
सब अपने आप मे हीं मस्त है,
होली इसे देखकर बहुत त्रस्त है।।
गाय भैस अब कोई पालता नहीं,
गोबर इनका कहीं मिलता नहीं।
गोबर के चाँद सूरज बनते नहीं,
होली मे अब कही जलते नहीं।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम