क्या थी क्या हो गई मां

तिनका- तिनका जोड़कर अपना घर बनाया तुमने,
अपने तन के सुन्दर पौधे पर हम बच्चों को फूल सा सजाया तुमने,
हम सब की दुःख उठाई मां।
क्या थी क्या हो गई मां।
घंटो घंटो बातें करते, एक – दूसरे को खूब समझते।
तू रोती, मैं भी रोता, तू हंसती तो मैं भी हंसता।
गत दुखभरी बातों पर रो देती मां।
क्या थी क्या हो गई मां।
एक समय में बोलती,
बेटे की कामयाबी पर खूब राज रजाती।
पर अब तू कामयाब बेटे को देखकर, कुछ कह नहीं पाती।
अंदर ही अंदर दुःख छुपाती मां।
क्या थी क्या हो गई मां।
अंदर से तू जितनी टूटी है, उतना ही रोज मैं टूटता हूं।
कब होगी तू पूर्व की जैसी यही प्रतीक्षा करता हूं।
अपने पीड़ा को सहते चुपचाप सो जाती मां।
क्या थी क्या हो गई मां।
ये शान- सौकत,,
ये शोहरत- दौलत,,
नही मेरे किसी काम के है।
तू है तो सबकुछ है, वरना सब नाम के है।
है यही कामना तू फिर उसी दौर में आ जाती मां।
क्या थी क्या हो गई मां।