मोमबत्तियां और तस्वीर

मोमबत्तियां और तस्वीर
उलझन में हूं माँ ,
कुछ सोचकर नींदे चुरा रही ।
पर सुकून की तलाश , ना जाने कहाँ ले जा रही ।
मैं चींखी, चिल्लायी, रोयी और मांगा माफ़ी भी ,
पर चालीस हजार की विद्यार्थीयों में मैं नजर ना आई ।
गुरुओं ने तिरस्कार किया सो गोविंद भी ना आए ।
सब कोशिस नाकाम हुई , वो कलयुगी जीतता गया ।
मैं सबकुछ हार गई ..
पहले हिम्मत फिर खुद को
काश तुमसे मिल पाती माँ ,इन आखिरी पलों में ।
पर सुकून की तलाश मुझे शून्य के करीब भायी ।
और फिर !
अचानक एक आवाज आई…..
माँ प्रकृति बुला रही इस सीता को
अब जा रही हूं माँ, इस नाम को छोड़कर ।
कारण राम-रावण नही मानव है ।
आप आना जरूर मोमबत्तियां लेकर ,
संग एक अच्छी तस्वीर भी ,
आखिर उसे ही तो इंसाफ मिलेगा ।
इस माटी के देह को तो सबने धिक्कारा,
गोद में जा बसी सीता, मां प्रकृति के
तब हाय हाय सबने पुकारा ।।
~ कुमारी कोमल