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31 May 2024 · 1 min read

अलख क्रांति

आग लगाई है कहीं तुमने अगर,
खून के अश्कों से बुझानी पड़ेगी।
जिंदगी जहर है या कहीं अमृत है,
पीने की जहमत उठानी पड़ेगी।
भस्म नहीं हो जाए जज़बात कहीं,
प्रेम की चिंगारी जलानी पड़ेगी।
रोक पाओगे झगड़े -फसादों को,
भूख हर पेट की मिटानी पड़ेगी।
बटमार कहीं आबरू के लुटेरे,
इन से तो निजात दिलानी पड़ेगी।
दूजे का घर जला सेक रहे रोटी,
एक दिन उन्हें मुॅंह की खानी पड़ेगी।
यह गंगा भी अब मैली हो गई है,
नव गंगा धरा पर लानी पड़ेगी।
सो चुके हो बहुत तुम जनता जनार्दन,
अब अलख क्रांति की जगानी पड़ेगी।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)

Language: Hindi
6 Likes · 2 Comments · 178 Views
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