कुंडलिया. . .

कुंडलिया. . .
कब समझे नेता भला, क्षुधित उदर की बात ।
मुफलिस को हर रात दे, अश्कों की सौगात ।
अश्कों की सौगात, भला कब छूटी उससे ।
जीवन भर यह प्रश्न , सदा वह पूछे खुद से ।
वादों का है जाल , सदा यह उसमें उलझे ।
नेताओं की चाल, भला कब मुफलिस समझे ।
सुशील सरना / 6-3-25