पग पग उलझन नई खड़ी है

पग पग उलझन नई खड़ी है,
पर हर किसी को अपनी पड़ी है।
ना समझे कोई कौन यहाँ दुखी है,
बस सभी को अपनी खुशियों की चिंता पड़ी है।।
देख सितारा मन ही मन खुश हो जाए,
चांद की चमक उसके होने से बड़ी है।
पर्वत घमंड से अडिग खड़ा मुस्काए,
सारी दुनिया उसके पैरों के नीचे पड़ी है।।
हार-जीत उम्र भर की नहीं है,
आज तेरी तो कल मेरी बारी आन पड़ी है।
सुख के पीछे दुख की लंबी कतार खड़ी है,
पर हर दरवाजे़ पे आस की उम्मीद जगी है।।
कठपुतली बन नचाये वक़्त हर किसी को,
उसके आगे ना किसी की भी मर्जी चली है।
बचपन,जवानी और बुढ़ापा जीवन की तीन कड़ी हैं,
आखिरी पड़ाव मृत्यु,यहीं सच्चाई सबसे बड़ी है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”