*वह धन्य हुआ जो कुंभ गया, जो कुंभ क्षेत्र में आया है (छह राध

वह धन्य हुआ जो कुंभ गया, जो कुंभ क्षेत्र में आया है (छह राधेश्यामी छंद)
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1)
वह धन्य हुआ जो कुंभ गया, जो कुंभ-क्षेत्र में आया है
सबके अनुभव हैं अलग-अलग, सबने अद्भुत फल पाया है
यह महाकुंभ है भीड़ भरा, यह कभी-कभी ही खाली है
यह कुंभ मिला जिसको-जैसा, इसकी हर छटा निराली है
2)
कुछ पैदल ज्यादा चले गए, कुछ फॅंसे जाम में पाए थे
कुछ कंधे पर झोला लेकर , मीलों तक चलकर आए थे
कुछ को भोजन भी कठिन रहा, रातों का सफर बिताया था
संतोष-भाव था पर मन में, डुबकी में अमरित पाया था
3)
कुछ बच्चे लेकर आए थे, खोने के डर से साथ रहे
कुछ खुद तो कम ही घूम सके, बच्चों के पकड़े हाथ रहे
कुछ बस भर-भर कर आए थे, उनके सॅंग उनकी टोली थी
हर टोली में था गॉंव-शहर, सबकी अपनी ही बोली थी
4)
सब कुंभ नहाने आए थे, सब ही प्रयाग में रमे रहे
जितना जिसको भी समय मिला, सब जन प्रयाग में जमे रहे
कुछ कल्पवास करने वाले, वे एक माह-भर रहते थे
कुछ उनके ही दर्शन करके, बड़भागी खुद को कहते थे
5)
जो पद हो जिसके पास भले, वह पैदल ही चल कर आया
हो बड़ी सुरक्षा मिली भले, कब बड़ा कुंभ में कहलाया
जल का प्रवाह सब एक मिला, सब राजा-रंक न भेद रहा
जो कुंभ नहीं जा सका उसे, ना जाने का बस खेद रहा
6)
जो घाट मिला जिसको जैसा, वह उसी घाट पर नहा गया
सब घाटों पर अमरित रस है, संतो के मुख से कहा गया
यह कुंभ सनातन का स्वर है, भारत का यह शाश्वत धन है
यह धन्य-धन्य यह महाकुंभ, यह भारत का निर्मल मन है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451