तुम ही तुम
मेरे हृदय समाये तुम ही तुम ।
हो प्रेम मे मेरे गुम भी तुम ।।
तुम तुम तुम हो तुम ही तुम ।
हां प्रेम मे मेरे गुम भी तुम ।।
चहरे की ये लाली तुम ही तुम ।
कानो की ये बाली तुम ही तुम ।।
नयनो का नशा हो तुम ही तुम ।
मदिरा की हो प्याली केवल तुम ।।
ठोड़ी है ये प्यारी तुम ही तुम ।
गुस्से की सवारी तुम ही तुम ।।
नयनो मे कटारी तुम ही तुम ।
लगती हो प्यारी केवल तुम ।।
सीने मे छिपाती राज हो तुम ।
सबसे प्यारी हमराज हो तुम ।।
मिलती भी नही पर मेरी तुम ।
काजू की हो कतली केवल तुम ।।
अधरो पे छिपाती नाम भी तुम ।
संगीत का हो सुर-तान भी तुम ।।
हसती हो तो लगती जान भी तुम ।
मेरे लिए तो हो भगवान भी तुम ।।
ममता की हो केवल प्याली तुम ।
गालो पे लगी जो वो लाली तुम ।।
आँचल मे छुपा वो प्रेम हो तुम ।
कहने को हो दिल का चैन भी तुम ।।
चलती हो तो हिरनी जैसी तुम ।
मेरे स्नेह की हो बस प्यासी तुम ।।
मेरे जीवन की हो परछाई तुम ।
लगता है चली और आई तुम ।।
गंगा की हो निर्मल धार भी तुम ।
सागर सा हो गहरा प्यार भी तुम ।।
आंधी और तुफान का सार भी तुम ।
चलती शीतल सी वो बयार भी तुम ।।
ललकार भारद्वाज
30 जनवरी 2025