कुंडलिया. . . .
कुंडलिया. . . .
बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक रहे हैं आज ।
दुर्व्यस्न में भूलते, जीवन की परवाज ।
जीवन की परवाज , लक्ष्य यह भूले अपना ।
बिना कर्म यह अर्थ , प्राप्ति का देखें सपना ।
जीवन से अंजान, उम्र से हैं यह कच्चे ।
आज नशे में चूर , भटकते देखे बच्चे ।
सुशील सरना / 8-12-24