*जब से लगी तुम से दिल्लगी*

जब से लगी तुम से दिल्लगी
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जब से लगी तुम से दिल्लगी,
होने लगी दिल में खलबली।
शौक से मौत से खेलते हम,
वश में आती नहीं मनचली।
काँटो से भरी सेज है सामने,
मौज में मस्तियों की है गली।
नीले नैन नीर से है भरे हुए,
जैसे शुरू है सावन की झड़ी।
मनसीरत चलो मत रुको यूँ,
कैसी भी हवा चाहे हो चली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)