एक मलंग

एक मलंग
महाकुंभ के मेले में,आया एक मलंग
तन से जोगी, मन से जोगी।
शरीर पर लगाये भस्म
आँखों में तेज बसे, कहे सत्य वचन।।
अनुसरण शिव का करता
खुद को कहता शून्य।
न कोई गुरु न कोई चेला,
बस अकेला रहता वो मस्त।।
आध्यात्मिकता ज्ञान समेटे
छोड़ा- छाड कर मोह माया ।
साधु संत का भेष बनाया
संसार को भ्रष्ट बताया।।
बातों- बातों में एक अनर्थ कर जाता है
माँ पिता की परवरिश पर, कलंक वो लगाता है।
यही बात उसकी, उस पर भारी पड़ती है
कौन मात- पिता, अपनी संतान का अहित करती है।।
हरमिंदर कौर,
अमरोहा यूपी