मेरा देश बड़ा अलबेला
मेरा देश बड़ा अलबेला
यहाँ हरदम लगता मेला
होता बैलों का खेला
मेरा देश बड़ा अलबेला।
यहाँ भांत-भांत की भाषा
अलग धर्म है, अलग है जाति
अलग- अलग अभिलाषा
अलग उमंग है, अलग तरंग
जीवन की बढ़ती आशा
आशाओं को लेकर के
यहाँ हर दिन लगता मेला।
मेरा देश बड़ा अलबेला।।
कहीं पे गर्मी, कहीं पे सर्दी
कहीं पहाड़ तो कहीं पे गर्दी
कहीं बर्फ़ है, कहीं जलाशय
कहीं है समतल, कहीं हिमालय
कहीं है मस्जिद, कहीं शिवालय
गंगा यमुना जहाँ मिले
वहाँ लगता कुंभ का मेला।
मेरा देश बड़ा अलबेला।।
उत्तर में जहाँ खड़ा हिमालय
दक्षिण में बहता सागर
पूर्व में होता सूर्य उदय
तो पश्चिम में द्वीप है दादर
एक सूत्र में बंधे हैं हम सब
नहीं किसी के मन में मैला।
मेरा देश बड़ा अलबेला।।
यहाँ हरदम लगता मेला
होता बैलों का खेला
मेरा देश बड़ा अलबेला।