वतन परस्त लोग थे, वतन को जान दे गए
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ग़ज़ल ,,,,🇮🇳
1,,
वतन परस्त लोग थे, वतन को जान दे गए ,
लिया नहीं किसी से कुछ, सभी को मान दे गए ।
2,,
यक़ीन की हवा चली ,तो सब कमान दे गए ,
मिटा दिया ख़ुदी को फिर जो खानदान दे गए।
3,,
शहादतें नसीब बन के , फूल सी खिली रहीं ,
कटा के सर ज़हीन सब थे, जान-मान दे गए ।
4,,
शहीद होके आज भी, वो दिल में घर बसाए हैं ,
कहानियाँ नहीं हक़ीक़तों का पान दे गए ।
5,,
गुलाब बन के खिल रहे , महक रही गली गली ,
शहीद ज़िंदगी मिली , गुले जहान दे गए ।
6,,
जगा गए हैं क़ौम को , मुहब्बतों के नाम पर ,
दुआ में “नील” की इधर , सुबह अज़ान दे गए ।
✍️नील रूहानी,,, 25/01/2025,,,,,,🇮🇳🥰
( नीलोफर खान)