टूटते रिश्ते
टूटते रिश्ते
कल एक शादी समारोह में जाना हुआ वहाँ पर जाकर जो दृश्य मैंने देखा आजकल के अपनेपन के रिश्तों को देखकर मैंने जो अनुभव किया
कि वहाँ पर सभी जाने पहचाने चेहरे नज़र आ रहे थे। कुछ बहुत खास अपने खून के रिश्ते थे। कुछ दूर के रिश्ते थे बाकी चेहरे काफी अरसे बाद देखे थे। लेकिन सभी में एक बात समान थी कि अपने भी परायों की तरह पराए लग रहे थे। वो अपने खून के रिश्तों से ज्यादा दूर के रिश्तों में खुश नजर आ रहे थे।
वक्त कितनी जल्दी बदल जाता है ये आजकल का माहौल हमें सिर्फ बताता ही नहीं दिखला भी देता है।आजकल के रिश्ते इतने कच्चे और इतने सस्ते हो गए हैं कि ना ही उन्हे टूटने में वक्त लगता है और ना ही रिश्तों के बीच दरार पडने में। लेकिन फिर भी अपने तो अपने ही होते हैं उनकी कशिश हमें उन तरफ खींच ले ही जाती है चाहे चेहरे पर नकली मुखौटा ही लगाकर हमें क्यों ना उनसे मिलना पड़े।
अब हम किसी से शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि शिकायत हम उनसे करना चाहते हैं लेकिन वो हम पर ही वापिस आ जाती हैं। हम किसी को अपने घर बुलाने के लिए जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते, अपनी संगत में बनाए रखने के लिए उनसे मनुहार नहीं कर सकते। कितने अजीब रिश्ते हो गए हैं? अपने- अपनों से इतने प्यार से नहीं मिलते जितने गैरो से मिलते हैं। हर शख्स अपनों से दूर नजर आ रहा था और गैरों के पास उन्हें देखकर मुझे मन-ही-मन में उत्सुकता भी हो रही थी और थोड़ा दुख भी।
कि कैसा वक्त आ गया है? हर शख्स अपने करीबी रिश्ते से दूर और दूर के रिश्ते से करीब नजर आ रहा है।
अपनों से शायद इसीलिए दूरी बना रहे थे कि कहीं कोई उनसे अपनेपन का सवाल न कर लिया जाए। जिसका उत्तर वो नहीं देना चाहते थे यह उतने प्रेम से आपसे मिलना नहीं चाहते थे कि आप उनसे कोई वार्तालाप करें बस एक मात्र परिचय सा देकर यह एक दूसरे से लेकर सब गैरों में ऐसे संलग्न थे। जैसे वो सिर्फ इकट्ठे ही उन लोगों के लिए हुए हों जो वहां पर खून के रिश्ते न होकर सिर्फ परिचय मात्र के रिश्ते थे।
अभी तक तो इतना बदलाव आया है। आगे आने वाली पीढ़ी में न। जाने कितने और बदलावों में देखने को मिलेंगे?अभी हम अपने असली चेहरे पर नकली चेहरा लगाकर ही मित्रवत व्यवहार कर रहे हैं। एक दूसरे से मिल रहे हैं लेकिन शायद आने वाले वक्त में ये भी एक भूलावा मात्र रह जाएगा।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (उत्तर प्रदेश)